शुद्ध पेयजल को तरसते लोग: कहाँ है लोकप्रिय सरकार

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पिछली साल एक अग्रणी अंग्रेजी दैनिक अखबार ने खुलासा किया था कांगडा जिले के  25 गांव की दस हजार आबादी किस तरह प्रदूषित पेयजल पीने के लिए विवश  थी।  इसमें बताया गया था कि सरकार ने पेयजल स्कीम तो मुहैया कराई है मगर  जन स्वास्थय विभाग ने पेय जल सप्लाई के लिए निर्मित कुएं को खुला ही छोड दिया था। इससे  लोगों को प्रदूषित एवं अशुद्ध पेयजल की सप्लाई की जा रही थी। लंबे समय से यह सिलसिला चल रहा था। लोगो ने कई बार  शिकायत की मगर किसी के कान पर जूं तक नहीं रेंगी।  खबर छपने पर विभाग हरकत में आया तो सही मगर इसकी कोई गारंटी नहीं है कि लोगों को स्वच्छ पेय जल मिल रहा है । पूरे हिमाचल प्रदेश  में यही हालात है। नदी किनारे बसे मंडी  शहर भी पीने के पानी को तरस रहे हैं। ब्यास नदी किनारे स्थित मंडी  शहर में रोजाना बमुश्किल  एक घंटा सुबह, एक घंटा  शाम  पेय जल की सप्लाई होती है और  शुद्ध पेयजल की कोई गारंटी नहीं है।  राजधानी  शिमला में पेयजल क भीशण संकट बना रहता है। गर्मियों में तो कुछ ज्यादा ही। एक तो पेय जल का संकट, उस पर पर्यटकों का भारी रश । आम आदमी का हैरान-परेशान होना स्वभाविक है। शिमला से लगभग 4 किलोमीटर दूर चाबा से सतलुज बहती है आज तक इस नदी से  शिमला के लिए पानी लिफ्ट नहीं हो पाया। राजीव गांधी जब प्रधानमंत्री थे, उन्होंने  शिमला के लिए सतलुज से पानी लिफ्ट करने का वाादा किया था मगर कुछ नही हुआ।  फिरंगियों ने  जब  शिमला बसाया था, बसतंपुर के निकट गुम्मा से नॉटी (चंचल ) खडड से  पेयजल सप्लाई मुहैया कराई और और इसी खडड के पानी से चाबा में बिजली तैयार की। फिरंगियों के जमने में न तो बिजली का संकट, न ही पीने के पाई की किल्लत। स्वदेशी  सरकार के आते ही पीने का पानी का संकट।  गर्मियों में  स्वच्छ पेयजल की सप्लाई तो दीगर रही, ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों को बूंद-बूंद के लिए तरसना पडा है।  सरकार का दावा है कि राज्य में प्रति व्यक्ति 70 लीटर पीने का पानी मुहैया कराया जा रहा है मगर इन आंकडों पर विश्वास  करना कठिन है। आंकडों को बढा-चढा कर पेश  करना नौकरशाही को खूब आता है। युएन के मानदंडों के अनुसार गर्म  इलाकों  में  हर व्यक्ति को रोजाना कम-से-कम 16 लीटर स्वच्छ पीने का पानी पीना चाहिए।   स्वच्छ पेय जल हर आदमी की बुनियादी जरुरत है। और अगर आजादी के सात दशक में भी लोगों को स्वच्छ पेयजल के लिए तरसना पडे तो ऐसी आजादी किस काम की़ हर सरकार और उसका मुखिया सत्ता में आते ही लोगों को पेय जल की नियमित आपूर्ति का वायदा करती है। 1977 में शांता  कुमार के नेतृत्व वाली सरकार ने सभी “बहनों“ को स्वच्छ पीने का पानी मुहैया कराने का पक्का वायदा किया था। उन्होंने इस दिशा  में काम भी किया मगर अढाई साल में ही उनकी सरकार गिर गई। देश  में हर नई सरकार को पिछली सरकार को नीचा दिखाने और उसके कार्यक्रमों को निरस्त करने या बदलने की लत है। शांता  कुमार की इस योजना को गति नहीं मिल पाई हालांकि 1990 में दोबारा मुख्यमंत्री बनने पर उन्होंने फिर इस महत्वाकांक्षी योजना को रिवाइव करने की हर संभव कोषिष की मगर इस बार भी उनकी सरकार अढाई साल से ज्यादा नहीं चली। लोगों को समयबद्ध सुविधाओं के साथ-साथ इनकी स्पीडी डिलीवरी हर सरकार की प्राथमिकता होची चाहिए। जयराम सरकार भी अपवाद नहीं है।

(चंद्र  शर्मा )

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